मुंबई, 05 अक्तूबर, 2020: मीडिया कंसल्टिंग फर्म ऑरमैक्स मीडिया ने ‘साइजिंग द सिनेमा: एन ऑरमैक्स मीडिया रिपोर्ट ऑन इंडियाज थियेट्रिकल ऑडियंस रीच’ शीर्षक से अपनी रिसर्च रिपोर्ट जारी की है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 5,600 भारतीयों के सर्वेक्षण पर आधारित यह रिपोर्ट भारत में थिएटर दर्शक जगत का आकार-प्रकार बताने वाली भारत की पहली निर्णायक और स्पष्ट स्टडी है। उल्लेखनीय है कि इस सर्वेक्षण के लिए डेटा कोविड-19 महामारी के कारण लगे लॉकडाउन से पहले जनवरी-मार्च 2020 में जुटाया गया था।
इस रिपोर्ट के अनुसार, 14.6 करोड़ (145.7 मिलियन) भारतीय 2019 में फिल्म देखने के लिए कम से कम एक बार थिएटर (सिनेमाघर) गए। इस तरह भारत में सिनेमाघर की पहुंच इसकी आबादी के 10.5% हिस्से तक है। इन 14.6 करोड़ दर्शकों ने 2019 में 103.0 करोड़ थियेट्रिकल फुटफॉल्स का योगदान दिया, यानी प्रति व्यक्ति 7.1 फिल्मों का औसत (विभिन्न भाषाओं में)।
अन्य मुख्य बिंदु:
- सिनेमाघरों तक पहुंच रखने वालों का 58% हिस्सा शहरी भारत से आता है। ग्रामीण क्षेत्रों में भारत की 69% आबादी रहती है, लेकिन थिएटर जाकर फिल्म देखने वालों में उसका हिस्सा सिर्फ 42% है, क्योंकि उन क्षेत्रों में थिएटर्स की संख्या कम है।
- भारत की 52% पुरुष आबादी थिएटर जगत में 61% का योगदान करती है। देश में सिनेमाघर जाने वालों की औसत आयु 27.5 वर्ष है।
- दक्षिण भारत बेशक सिनेमाघरों की सबसे ज्यादा पैठ वाला क्षेत्र है। 2019 में वहां 22% आबादी थिएटरों तक पहुंची थी। नतीजतन, यह थिएटर जगत में 44% का योगदान देता है, जो कि भारत की जनसंख्या में इसके 21% हिस्से के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है।
- हिंदी (51%), तेलुगु (21%), तमिल (19%) और हॉलीवुड (डब वर्जन्स सहित 15%) शीर्ष 4 भाषाएं हैं, जिनमें भारत के सिनेमाघरों में फिल्में देखी गई हैं।
- एक औसत सिनेमाघर जाने वाला भारतीय 1.4 भाषाओं में फिल्में देखता है। ज्यादा भाषाओं में फिल्में देखने के मामले में केरल (1.7) और महाराष्ट्र (1.6) सबसे आगे हैं।
इस रिपोर्ट और इसके निष्कर्षों के बारे में ऑरमैक्स मीडिया के संस्थापक और सीईओ शैलेश कपूर ने कहा: “सिनेमाघर जाकर फिल्म देखने वाले भारतीय दर्शकों के बारे में अब तक उपलब्ध डेटा की गुणवत्ता बहुत खराब रही है। 14.6 करोड़ दर्शकों वाले भारत के थिएटर जगत का आकार इतना बड़ा तो है कि वह डेटा की बेहतर गुणवत्ता का हक रखता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण और बहुभाषी देश में, ऐसे डेटा का अभाव कंटेंट और मार्केटिंग रणनीतियों की योजना बनाते वक्त स्टूडियो और स्वतंत्र निर्माताओं के लिए राहें सीमित करने वाला अहम कारक हो सकता है। यह अध्ययन सिनेमाघर जाने वालों की जनसांख्यिकी के साथ-साथ भारत के विभिन्न राज्यों में भाषा के दोहराव (डुप्लीकेशन) को समझने जैसी कई चीजों पर केंद्रित है। हमें विश्वास है कि यह सिनेमाघरों से जुड़े व्यवसाय के विभिन्न हितधारकों को ज्यादा जानकारियों के आधार पर बेहतर निर्णय लेने में मदद करेगा।”
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